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द डेविल

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



पतन, अप्रत्याशित विफलता, विवाद,तबाही, आपदा, बदमिजाज, छाया स्व, आसक्ति, व्यसन, प्रतिबंध, कामुकता

यह कार्ड एक 'नो' नकारात्मक कार्ड है। नकारात्मक कार्ड डरावना नहीं होता। वो हमें सूचना देनेवाला हमारा मित्र होता है। कई बार इसकी अहमियत यस कार्ड से भी बडी होती है। क्योंकि आनंद खुशियाँ कामयाबी इसकी बाते तो सभी करेंगे लेकिन कहाँ पर खतरा है, आपकी गलती क्या है यह बतानेवाला ही सच्चा गुरू होता है।

मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि हत्यारे को बुरी शक्ति माना जाता है और जिसे मारा जाता है उसे सहानुभूति मिलती है।

यहाँ हत्या की शक्ति भगवान है; भगवान नरसिंह। जिसे मारा जा रहा है वह शैतान है, हिरण्यकश्यप ।

यहाँ जिसका पतन हो रहा है वो आप नहीं है। बुरी शक्तियों का पतन हो रहा है।आपके अंदर किसीने बुरी शक्तियाँ डाली है उनका पतन हो रहा है। आपको अनपेक्षित अप्रत्याशित विफलता मिल सकती है। लेकिन उसके पीछे भी कोई राज है। आज आप दो कदम पीछे आ रहे हैं तो कल और लम्बी छलांग लगाने के लिए। अनेक विवाद, तबाही, आपदा का सामना आपको करना पड सकता है। आपको परेशान करेंगे बदमिजाज एवं स्वआसक्ति वाले इंसान। आपको इतना टेंशन जान बूझकर दिया जा सकता है कि आपको व्यसन करने की इच्छा होगी। अपनी इछाओपर प्रतिबंध लगाईए। यह कार्ड दर्शाता है कि आप छुप छुपकर पोर्न देख्ते है। जिससे आप के अंदर कामुकता बध रही है। कामुक होना कोई बुरी बात अहईं लेकिन पार्ट्नर में वो क्षमता नहीं जिससे आपको सुख और सम्पूर्ण समाधान मिले। अगर आप उम्र का चालीसवाँ जनम्दिन मना चुके हैं तो आपका 'लफडा' होने का चांस है। चाहे औरत है या मर्द्। कार्ड कभी झूठ नहीं बोलते।

रिवर्स भविष्य कथन



रिहाई, ज्ञानोदय, तलाक,पुनर्प्राप्ति, सीमित विश्वासों को छोड़ना, गूढ विचारों की खोज करना, वैराग्य

यह कार्ड अन्य कार्डोंसे हटकर है। अन्य कार्ड सामान्यत: अपराईट में सकारात्मक और रिवर्स में नकारात्मक होते है। किंतु यहाँ मामला उल्टा हो जाता है। कार्ड दर्शाता है कि भावनाओंके आगोश या कैद से मुक्त होनेवाले है। रिहाई निश्चित है। अनेक प्रोब्लम को समझते समझते आपका ज्ञानोदय होगा। आपको आत्म ग्यान होगा। अगर आपका कोर्ट में डिवोर्स का केस चल रहा है या घरेलू झग़डे चल रहे हैं तो तलाक निश्चित होगा। अगर आप नही चाहते कि तलाक हो, तो आपको प्रयत्न पूर्वक अपने स्वभाव में बदलाव लाने पडेंगे। क्या आप इसके लिए तैय्यार है? यह सवाल अपने आप से पूछ लीजिए। क्योंकि कई बार तलाक आप नहीं चाहते किंतु दूसरा पार्ट्नर चाहता है तो क्या करे?

बहरहाल इसी बीच आपको अपने खोए हुए प्यार की पुनर्प्राप्ति हो सकती है। सीमित विश्वासों को छोड़ना है और गूढ विचारों की खोज करना है, यही आपके भाग्य में लिखा है। छोडे यह सब मगजमारी और वैराग्य धारण कर लो। बता दो पति को के बच्चोंका करियर सेट होने के बाद मुझे अपनी मुक्ती के मार्ग मर जाने दो। मुझे बांधकर नहीं रखना। अब घर संसार में रहते हुए विरक्ति आएगी। हरी ॐ

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



द डेविल- शैतान- एक गलत पहचाना गया कार्ड है। युरोपिय आधुनिक टैरो कार्ड में एक विशाल सींग वाले ग्रे कलर के चमगादड़ के पंख पसारे शैतान अपने पैरों पर किसी बोक्स पर अंधेरे में संतुलन लेकर पर बैठा हैं। डेविल्स के माथे पर एक तारा अंकित है।

एक नग्न जोड़े को बड़ी जंजीर से बंदी बना दिया है। जोडे के सिर पर सींग हैं। क्या दोनों मनुष्यों को पूंछ है(?) यह पूंछ की तरह दिख रहा है, लेकिन उसपर त्वचा का रंग नहीं है, इसलिए इसे पूंछ नहीं कह सकते। वैसे भी महिला की पूंछ पर चेरी है और दानव की मशाल पुरुष की पूंछ में आग लगा रही है।

शैतान अपने बाएं हाथ में जलती हुई मशाल लिए हुए है और उसका दाहिना हाथ आशीर्वाद की तरह हवा में उठा हुआ है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


आइए अब हम मूल प्राचीन भारतीय कार्ड और इसके पीछे की कहानी को समझते हैं।फिर से, यह एक रहस्यमय कहानी है, जिसे समझना गैर भारतीय के लिए मुश्किल है। यह समझना होगा कि कौन शैतान है और कौन भगवान ..

मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि हत्यारे को बुरी शक्ति माना जाता है और जिसे मारा जाता है उसे सहानुभूति मिलती है।

यहाँ हत्या की शक्ति भगवान है। भगवान नरसिंह। जिसे मारा जा रहा है वह शैतान है, हिरण्यकश्यप ।

हिरण्यकश्यप का वध भगवान नरसिंह ने किया था। उनके दाहिनी ओर भक्त प्रह्लाद हैं। बाईं ओर लक्ष्मी और एक सेवक प्रार्थना कर रहे हैं। यहाँ सिंहमुखी देवता शैतान नहीं है। यह भगवान नरसिंह हैं। शैतान मारा जा रहा है; जो कुछ भी आप देखते हैं उससे सच्चाई अलग हो सकती है। "जो दिखता है वो नहीं है, जो नहीं दिखता है वो है।"

मुझे पता है कि यह बहुत ही रहस्यमय अवधारणा और रहस्यमयी कार्ड है।

(हिरण्यकश्यप का वध भगवान नरसिंह ने क्यों किया था यह कहानी।)

कश्यप नामक ऋषि एवं उनकी पत्नी दिति को 2 पुत्र हुए जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का 'हिरण्यकशिपु' था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया।

सहस्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: संपूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरुपाय हो गए थे। वे असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे।

ब्रह्माजी की हिरण्यकश्यप कठोर तपस्या करता है। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी वरदान देते हैं कि उसे न कोई घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से और न शस्त्र से, न दिन में मरे न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में न पृथ्वी में।

इस वरदान के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रभु भक्तों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, लेकिन भक्त प्रहलाद के जन्म के बाद हिरण्यकश्यप उसकी भक्ति से भयभीत हो जाता है, उसे मृत्युलोक पहुंचाने के लिए प्रयास करता है। इसके बाद भगवान विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लेते हैं और हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं।

भगवान नरसिंह में वे सभी लक्षण थे, जो हिरण्यकश्यप के मृत्यु के वरदान को संतुष्ट करते थे। भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का नाश हुआ किंतु एक और समस्या खड़ी हो गई। भगवान नरसिंह इतने क्रोध में थे कि लगता था, जैसे वे प्रत्येक प्राणी का संहार कर देंगे। यहां तक कि स्वयं प्रह्लाद भी उनके क्रोध को शांत करने में विफल रहा।

सभी देवता भयभीत हो भगवान ब्रम्हा की शरण में गए। परमपिता ब्रम्हा उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे अपने अवतार के क्रोध शांत कर लें किंतु भगवान विष्णु ने ऐसा करने में अपनी असमर्थता जतलाई। भगवान विष्णु ने सबको भगवान शंकर के पास चलने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि चूंकि भगवान शंकर उनके आराध्य हैं इसलिए केवल वही नरसिंह के क्रोध को शांत कर सकते हैं। और कोई उपाय न देखकर सभी भगवान शंकर के पास पहुंचे।

देवताओं के साथ स्वयं परमपिता ब्रम्हा और भगवान विष्णु के आग्रह पर भगवान शिव नरसिंह का क्रोध शांत करने उनके समक्ष पहुंचे किंतु उस समय तक भगवान नरसिंह का क्रोध सारी सीमाओं को पार कर गया था। साक्षात भगवान शंकर को सामने देखकर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ बल्कि वे स्वयं भगवान शंकर पर आक्रमण करने दौड़े।

उसी समय भगवान शंकर ने एक विकराल ऋषभ का रूप धारण किया और भगवान नरसिंह को अपनी पूंछ में लपेटकर खींचकर पाताल में ले गए। काफी देर तक भगवान शंकर ने भगवान नरसिंह को वैसे ही अपने पूंछ में जकड़कर रखा। अपनी सारी शक्तियों और प्रयासों के बाद भी भगवान नरसिंह उनकी पकड़ से छूटने में सफल नहीं हो पाए। अंत में शक्तिहीन होकर उन्होंने ऋषभ रूप में भगवान शंकर को पहचाना और तब उनका क्रोध शांत हुआ।

इसे देखकर भगवान ब्रम्हा और भगवान विष्णु के आग्रह पर ऋषभरूपी भगवान शंकर ने उन्हें मुक्त कर दिया। इस प्रकार देवताओं और प्रह्लाद के साथ-साथ सभी सत्पात्रों को 2 महान अवतारों के दर्शन हुए।

हरिण्याक्ष और हिरण्यकशिपु तथा उनकी बहिन होलिका वर्तमान की राजनीति के षड्यंत्रों के प्रतीक हैं। वर्तमान संदर्भों से इन प्रतीकों का गहरा रिश्ता है। आज राजनीति में शासक हिरण्यकशिपु है एवं प्रजा का प्रतिनिधित्व प्रह्लाद करता है।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

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द एम्प्रेस

द एम्परर

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द स्ट्रेंग्थ

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