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क्वीन ऑफ पेंटाकल्स

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



विचारशीलता, बुद्धि, प्रतिभा, उदासी, पोषण, व्यावहारिक, आर्थिक रूप से प्रदान करने वाला, एक कामकाजी माता-पिता।

यह कार्ड भाग्यशाली कार्ड है। यह दर्शाता है कि आपमें विचारशीलता, बुद्धि, प्रतिभा भी है। निषाद राजा नल की पत्नी रानी दमयंती को दर्शाता यह कार्ड एक राजकुमारी के रानी बनने के जैसी प्रक्रिया दर्शा रहा है। । बीच बिच में आपके मन पर विचारशील होने के कारण उदासी छाई रहती है।आपके द्वारा समाज, अपने लोग इन सबका सार्थक पोषण होता है। आप व्यावहारिक रूप से आर्थिक रूप से मदद प्रदान करने वाला बेहद सवेदंशील इंसान है।आप एक कामकाजी माता-पिता है। मतलब आप अपने परिवार से बेहद प्यार करते हैं।

रिवर्स भविष्य कथन



अविश्वास, संदेह, उपेक्षा, वित्तीय स्वतंत्रता, आत्म-देखभाल, कार्य-घर संघर्ष।

जीवन में समृद्धी होने के कारण आप दूसरों पर अविश्वास नहीं जताते। फिरभी आपको उपेक्षा महसूस होती है। तो भी आप उफ तक नहीं करते।किसी के प्रति संदेह जताना आपकी प्रवृत्ति नही। क्योंकि आपको चाहिए वित्तीय स्वतंत्रता, आत्म-देखभाल जिसके लिए आप कार्य-घर संघर्ष कर रहे हैं। बाकी तो आपके बारे में क्या कहने।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



पीले रंग के कपडा एवं लाल रंग की पोशाक में एक रानी एक कुर्सी पर बैठी है। कुर्सी में बकरी का सिर अंकित है। एक खरगोश जमीन पर खेल रहा है। रानी गहरे विचारों में है, उसका सिर नीचे की ओर है, पेंटाकल उसकी गोद में है। वह बगीचे में बैठी है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक रानी अपने महल में आराम से बैठी है। महल का रंग गहरा आसमानी नीला है। झूमर उसके भव्य जीवन शैली को दिखा रहे हैं। वह गुलाबी साड़ी में हैं लेकिन किसी के बारे में सोच रही हैं।

वह निषाद राजा नल की पत्नी रानी दमयंती हैं। नल दमयंती की प्रेम कहानी राजहंस-दूत के चरित्र के कारण बहुत प्रसिद्ध है।

राजा नल ने एक बार एक हंस को पकड़ा। हंस ने नल से अनुरोध किया कि यदि वह उड़ने की अनुमति देता है तो वह दमयंती के पास विदर्भ राज्य जाएगा और उसे राजा के बारे में बताएगा।

हंस ने दमयंती को मिलने के लिए विदर्भ राज्य के लिए उड़ान भरी, हंस ने राजा नल के बारे में एक महाकाव्य गाया। दमयंती, नल के प्यार में पागल हो गई, उसने अपना आपा खो दिया, वह बीमार पड़ गई।

बाद में, दोनों की शादी हो जाती है। राजा नल जुए में अचानक भिखारी बन जाता है।

दोनों जंगल चले जाते हैं। नल अपने कपड़े भी खो देता है। नल और दमयंती एक ही कपड़े में अपने आप को छिपा रहे थे। कि रात को नल एक विचित्र फैसला लेता है।..

(नल दमयंती की विस्तृत कथा)

निषाद देश में वीरसेन के पुत्र नल नाम के एक राजा थे। वे बड़े गुणवान्, परम सुन्दर, सत्यवादी, जितेन्द्रिय, सबके प्रिय थे। उनकी सेना बहुत बड़ी थी। वे स्वयं अस्त्रविद्या में बहुत निपुण थे। वे वीर, योद्धा, उदार और प्रबल पराक्रमी भी थे। उन्हें जूआ खेलने का भी कुछ-कुछ शौक था।

उन्हीं दिनों विदर्भ देश में भीम नाम के एक राजा पुत्रों की चार संताने थी दम, दान्त, दमन और दमयन्ती। दमयन्ती लक्ष्मी के समान रूपवती थी। उसके नेत्र विशाल थे। देवताओं और यक्षों में भी वैसी सुन्दरी कन्या कहीं देखने में नहीं आती थी। उन दिनों कितने ही लोग विदर्भ देश से निषाद देश में आते और राजा नल के सामने दमयन्ती के रूप और गुण का बखान करते। निषाद देश से विदर्भ में जाने वाले भी दमयन्ती के सामने राजा नल के रूप, गुण और पवित्र चरित्र का वर्णन करते। इस प्रकार दोनों के हृदय में पारस्परिक अनुराग अंकुरित हो गया।

एक दिन राजा नल ने अपने महल के उद्यान में कुछ हंसों को देखा। उन्होंने एक हंस को पकड़ लिया। हंस ने कहा ‘आप मुझे छोड़ दीजिये तो हम लोग दमयन्ती के पास जाकर आपके गुणों का ऐसा वर्णन करेंगे कि वह आपको अवश्य वर लेगी।’ नल ने हंसको छोड़ दिया।

वे उड़कर विदर्भ देश में गये। दमयन्ती अपने हंसों को देखकर बहुत प्रसन्न हुई । हंस ने बोला, ‘अरी दमयन्ती ! मनुष्यों में निषाद देश के नल राजा के समान सुन्दर और कोई नहीं है। वह मूर्तिमान् कामदेव है। यदि तुम उसकी पत्नी हो जाओ तो तुम्हारा जन्म और रूप दोनों सफल हो जाए।’ प्रेम विभोर दमयन्ती ने कहा ‘हंस ! तुम नल से मेरा संदेस कहना।’ दमयन्ती हंस के मुँह से राजा नल की कीर्ति सुनकर उनसे प्रेम करने लगी। उसकी आसक्ति इतनी बढ़ गयी कि वह रात-दिन उनका ही ध्यान करती रहती। शरीर धूमिल और दुबला हो गया। वह दीन-सी दिखने लगी।

सखियों ने दमयन्ती के हृदय का भाव ताड़कर विदर्भराज से निवेदन किया कि ‘आपकी पुत्री अस्वस्थ हो गयी है।’ राजा भीम ने अपनी पुत्री के सम्बन्ध में बड़ा विचार किया। अन्त में वह इस निर्णय पर पहुँचे कि मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गयी है, इसलिये इसका स्वयंवर कर देना चाहिये। देश-देश के नरपति हाथी, घोड़े और रथों की ध्वनि से पृथ्वी को मुखरित करते हुए सज-धजकर विदर्भ देश में पहुँचे।

देवर्षि नारद द्वारा देवताओं को भी दमयन्ती के स्वयंवर का समाचार मिल गया। इन्द्र आदि सभी लोकपाल भी अपनी मण्डली और वाहनों सहित विदर्भ देश के लिये रवाना हुए। देवताओं ने स्वर्ग से उतरते समय देख लिया कि कामदेव के समान सुन्दर नल दमयन्ती के स्वयंवर के लिये जा रहे हैं। नल की सूर्य के समान कान्ति और लोकोत्तर रूप-सम्पत्ति से देवता भी चकित हो गये। उन्होंने पहिचान लिया कि ये नल हैं। उन्होंने नल से कहा ‘ आप हमारे दूत बनकर दमयन्ती के पास जाइये और कहिए कि इन्द्र, वरुण, अग्नि और यमदेवता तुम्हारे पास आकर तुमसे विवाह करना चाहते हैं।’ नल ने दोनों हाथ जोड़कर कहा कि ‘जिसकी किसी स्त्री को पत्नी के रूप में पाने की इच्छा हो चुकी हो, वह भला, ऐसी बात कह ही कैसे सकता है ? आप लोग कृपया इस विषय में मुझे क्षमा कीजिये।

दमयन्ती का स्वयंवर हुआ जिसमें न केवल धरती के राजा, बल्कि देवता भी नल का रूप धरकर आ गए। स्वयंवर में एक साथ कई नल खड़े थे। सभी परेशान थे कि असली नल कौन होगा। लेकिन दमयन्ती जरा भी विचलित नहीं हुई। उसने आंखों से ही असली नल को पहचान लिया। सारे देवताओं ने भी उनका अभिवादन किया। दमयन्ती निषाद-नरेश राजा नल की महारानी बनी। दोनों बड़े सुख से समय बिताने लगे।

दमयन्ती पतिव्रताओं में शिरोमणि थी। अभिमान तो उसे कभी छू भी न सकता था। समयानुसार दमयन्ती के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ। दोनों बच्चे माता-पिता के अनुरूप ही सुन्दर रूप और गुणसे सम्पन्न थे। समय सदा एक-सा नहीं रहता, दुःख-सुख का चक्र निरन्तर चलता ही रहता है। वैसे तो महाराज नल गुणवान्, धर्मात्मा तथा पुण्यश्लोक थे, किन्तु उनमें दोष था जुए का व्यसन। नल के भाई पुष्कर ने उन्हें जुए के लिए आमन्त्रित किया। नल हारने लगे, सोना, चाँदी, रथ, राजपाट सब हाथ से निकल गया। महारानी दमयन्ती ने प्रतिकूल समय जानकर अपने दोनों बच्चों को विदर्भ देश की राजधानी कुण्डिनपुर भेज दिया।

नल जुए में अपना सर्वस्व हार गये। केवल एक वस्त्र पहनकर नगर से बाहर निकले। दमयन्ती ने भी मात्र एक साड़ी में पति का अनुसरण किया। एक दिन राजा नल ने सोने के पंख वाले कुछ पक्षी देखे। राजा नल ने सोचा, यदि इन्हें पकड़ लिया जाय तो इनको बेचकर निर्वाह करने के लिए कुछ धन कमाया जा सकता है। ऐसा विचारकर उन्होंने अपने पहनने का वस्त्र खोलकर पक्षियों पर फेंका। पक्षी वह वस्त्र लेकर उड़ गये। अब राजा नल के पास तन ढकने के लिए भी कोई वस्त्र न रह गया। नल अपनी अपेक्षा दमयन्ती के दुःख से अधिक व्याकुल थे। एक दिन दोनों जंगल में एक वृक्ष के नीचे एक ही वस्त्र से तन छिपाये पड़े थे। दमयन्ती को थकावट के कारण नींद आ गयी। राजा नल ने सोचा, दमयन्ती को मेरे कारण बड़ा दुःख सहन करना पड़ रहा है। यदि मैं इसे इसी अवस्था में यहीं छोड़कर चल दूँ तो यह किसी तरह अपने पिताके पास पहुँच जायगी।

यह विचारकर उन्होंने आधी साड़ी को काट लिया और उसी से अपना तन ढककर तथा दमयन्ती को उसी अवस्था में छोड़ कर वे चल दिये। जब दमयन्ती की नींद टूटी तो बेचारी अपने को अकेला पाकर करुण विलाप करने लगी। भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह अचानक अजगर के पास चली गयी और अजगर उसे निगलने लगा। दमयन्ती की चीख सुनकर एक व्याध ने उसे अजगर का ग्रास होने से बचाया। किंतु व्याध स्वभाव से दुष्ट था। उसने दमयन्ती के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे अपनी काम-पिपासा का शिकार बनाना चाहा। दमयन्ती उसे श्राप देते हुए बोली ‘यदि मैंने अपने पति राजा नल को छोड़कर किसी अन्य पुरुष का कभी चिन्तन न किया हो तो इस पापी व्याध के जीवन का अभी अन्त हो जाय। दमयन्ती की बात पूरी होते ही व्याध मृत्यु को प्राप्त हुआ।

भटकते भटकते दमयन्ती चेदि नरेश सुबाहु के पास गई जिसने उसे अपने पिता के पास पहुँचा दिया। अंततः दमयन्ती के सतीत्व के प्रभाव से एक दिन महाराज नल के दुःखो का भी अन्त हुआ। दोनों का पुनर्मिलन हुआ और राजा नल को उनका राज्य भी वापस मिल गया।





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