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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



मिठास, साहित्य में रुचि, नम्रता, रचनात्मक अवसर, सहज संदेश, जिज्ञासा, संभावना

कार्ड के चित्र दर्शाते हैं आपके जीवन की मिठास। आप एक कला प्रेमी इंसान हैं। जिसे साहित्य में रुचि है। आप हर किसी से नम्रता से पेश आते हैं। रचनात्मक अवसर आपके जीवन को भाग्यशाली बना रहा है।कुदरत के सहज संदेश की वजह से आप को आनंद आता है। आपकी जिज्ञासा आपके लिए अनेक संभावना लेकर आती है। अच्छा लगता है यह देखकर की आज परिवार के साथ आपको पार्टी मनाने का मन कर रहा है। नहीं लग रहा है तो पार्टी का मन बनाईये।

रिवर्स भविष्य कथन



खराब कल्पना, स्वार्थ, कोई इच्छा नहीं, नए विचार, संदेह अंतर्ज्ञान, रचनात्मक अवरोध, भावनात्मक अपरिपक्वता।

निश्चिंत रहिए आपके दिमाग में खराब कल्पना नहीं आएगी।न आपका स्वार्थ देखकर आप काम करते हैं ना किसी और को आप स्वार्थी होने देते हैं।किसी का बुरा करके खुद का भला करने की आपकी कोई इच्छा नहीं। नए विचार, संदेह अंतर्ज्ञान आपकी ताकत है। रचनात्मक अवरोध, भावनात्मक अपरिपक्वता अंतर्मन की लेवल पर महसूस हो सकते हैं। लेकिन हर एक बात की चिंता करने की फिकर छोड दीजिए। खुल कर जियो।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



एक युवक अफगानी स्टाइल की नीली पगड़ी पहने हुए है। उसने सर्कस के जोकर की तरह कपड़े पहने हैं। वह अपने दाहिने हाथ में एक प्याला पकड़े हुए है जिसमें जीवित मछली है। tarot.ideazunlimited.net.afghan turban

बैकग्राउंड में समुद्र की लहरें देखी जा सकती हैं। पेज या विदूषक पीले रंग की जमीन पर खड़ा है, उसके कपड़े पर कमल का डिज़ाइन है। tarot.ideazunlimited.net.afghan turban

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक भारतीय महिला पूजा कर रही है, और पवित्र तुलसी को जल दे रही है। प्राचीन भारत में पवित्र तुलसी के बिना कोई भी घर सम्पूर्ण नहीं हो सकता।

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वह नौ गज की साड़ी पहने एक विवाहित महिला है। घर में साग की लकडी के खंभे हैं। दरवाजे की चौखट लकड़ी की है। चौखट के शीर्ष पर विठु माऊली नामक देवता की छवि है। चौखट पर आम के पत्तों और गेंदे के फूलों की माला है। दरवाजे में सीढ़ियों के बीच में कुछ जगह है जिसे बरामदा कहा जाता है।

उसने पैरो में जूते नहीं पहने हैं।

घर में मुख्य द्वार के साथ बाहरी कंपाउंड है। अंदर की जगह को आंगन कहा जाता है। सफेद चम्पा के फूल खिले है।

तुलसी को वृंदा के नाम से भी जाना जाता है। इसे वृंदावन के नाम से भी जाना जाता है। वृंदा एक दानव परिवार में पैदा हुई थी। उसका विवाह जालंधर नामक राक्षस से हुआ था। (पंजाब के शहरों में से एक का नाम जालंधर भी है।) दानव राजा जालंधर अपनी पत्नी की प्रार्थना के कारण अपराजेय था।

जालंधर देवताओं के साथ युद्ध का ऐलान करता है। इसलिए भगवान विष्णु खुद जालंधर का रूप धारण करते है, और वृंदा का दरवाजा खटखटाते हैं। जिससे वृंदा विचलित हो जाती है। इस कारण उसने प्रार्थना की शुद्धता खो दी, जिसके परिणाम स्वरूप उधरजालंधर की मृत्यु हो जाती है।

tarot.ideazunlimited.net.shaligram सत्य को जानने के पश्चात वृंदा भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे देती है। अगले जन्म में वृंदा तुलसी का रूप ले लेती है।

अगले जन्म में भगवान विष्णु उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं। तो हर साल शालिग्राम और तुलसी का विवाह होता है।

गुजरात और राजस्थान की कुछ लोक कथाओं के अनुसार वृंदा भगवान कृष्ण की आठ पत्नियों में से एक सत्यभामा का पुनर्जन्म था।

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( कृष्ण की आठ पत्नियों के नाम रुक्मिणी, जंबुवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रवंद, सत्य, भाद्र और लक्ष्मण)

भगवान कृष्ण के साथ सत्यभामा के विवाह के रूप में कुछ अनुष्ठानों का पालन किया जाता है।

(वृंदा और भगवान विष्णु की विस्तृत कहानी )

पौराणिक काल में एक थी लड़की। नाम था वृंदा। राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गए।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरण छू लिए। जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

उन्होंने पूछा - आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

तुलसी विवाह पूजा विधि

तुलसी विवाह के दिन सूर्योदय से पूर्व ही उठ कर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके बाद तुलसी जी को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं और उन्हें श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें। यह सब करने के बाद शालिग्राम जी को तुलसी के पौधे में स्थापित करें। इसके बाद पंडित जी के द्वारा तुलसी और शालिग्राम का पूरे रीति रिवाजों से विवाह कराया जाता है। विवाह के समय पुरुष को शालिग्राम और स्त्री को तुलसी जी को हाथ में लेकर सात फेरे कराने चाहिए और विवाह संपन्न होने के बाद तुलसी जी की आरती भी करनी चाहिए।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

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