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नाइन ओफ वांड

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



जीत, अच्छा स्वास्थ्य, हठ, लचीलापन, साहस, दृढ़ता, विश्वास की परीक्षा, सीमाएं

इस कार्ड में किसान राजा है जिसे पृथु नाम से जाना जाता था। इन्ही के नाम पर इस ग्रह को पृथ्वी कहा गया। आपकी हर क्षेत्र में जीत होगी। अच्छा स्वास्थ्य रहेगा। ज्यादा हठ न कीजिए। जितना लचीलापन ज्यादा उतना आपका साहस और दृढ़ता उभरकर आएगी।आपके विश्वास की परीक्षा ली जाएगी। उन संकटों का सामना करने के लिए सभी सीमाएं आपको तोडनी है।

रिवर्स भविष्य कथन



कमजोरी, अस्वस्थता, प्रतिकूलता आंतरिक संसाधन, संघर्ष, अभिभूत, रक्षात्मक, व्यामोह

अथक भरपूर काम करने से आपको कमजोरी आएगी। कमजोरी के कारण अस्वस्थता महसूस होगी।संसाधनों की कमी एवं प्रतिकूलता होगी,आंतरिक संसाधन कम पडेंगे। संघर्ष होगा प्रकृति के साथ। जीवन में अभिभूत होना रक्षात्मक पद्धति से निर्णय लेना, नितांत आवश्यक है। व्यामोह मानसिक उन्माद से बचने के लिए खुद के मनोरंजन के लिए भी थोडा समय बचाना है। आपकी वजह से किसी को भी कुछ फर्क नहीं पडता।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



एक किसान एक वांड (गुढी) पकड़कर कुछ सोच रहा है। बाकी वांड पीठ पर हैं।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक बहुत मजबूत मर्दाना किसान अपने खेत में खड़ा है। आकाश में बरसात के काले बादल नहीं हैं। वह चिंतित है, जमीन सूख रही है।

वह किसान राजा है जिसे पृथु के नाम से जाना जाता है। उनके नाम से ही इस ग्रह का नाम पृथ्वी पड़ा है। वे वेणा और भगवान सूर्यनारायण के पुत्र थे।

वह सबसे तकतवर पौराणिक चरित्र हैं जो पृथ्वी पर मनुष्यों को खेती की तकनीक सिखाते थे। शासन करने की उनकी शैली बहुत ही अनोखी थी। वह कभी कभार ही किसी से युद्ध करते थे। वह बीज बोना, फसल उगाना , बैल का खेती के काम में प्रयोग करने की तकनीक ई। सिखाते थे। तब लोगों ने उनके सामने अपने आप को समर्पित कर दिया। उनका काम धर्म से , भाषा से परे था।

कुछ लोगों का मानना है कि पृथु भगवान विष्णु के ही अवतार थे।

(प्रथु भगवान की विस्तृत कहानी )

पृथु एक सूर्यवंशी राजा थे, जो वेन के पुत्र थे। वाल्मीकि रामायण में इन्हें अनरण्य का पुत्र तथा त्रिशंकु का पिता कहा गया है। ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे। स्वयंभुव मनु के वंशज अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसी पुत्री सुनीथा से हुआ था। वेन उनका पुत्र हुआ। सिंहासन पर बैठते ही उसने यज्ञ-कर्मादि बंद कर दिये। त्रषियों ने मंत्रपूत कुशों से उसे मार डाला। सुनिथा ने पुत्र का शव सुरक्षित रखा, जिसकी दाहिनी जंघा का मंथन करके त्रषियों ने एक नाटा और छोटा मुखवाला पुरुष उत्पन्न किया। उसने ब्राह्मणों से पूछा, कि ``मैं क्या करूं?'' ब्राह्मणों ने ``निषीद'' (बैठ) कहा। इसलिए उसका नाम निषाद पड़ा। उस निषाद द्वारा वेन के सारे पाप कट गये। बाद में ब्राह्मणों ने वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिसके फलस्वरूप स्त्री-पुरुष का जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम पृथु तथा स्त्री का नाम अर्चि हुआ। अर्चि पृथु की पत्नी हुई। यह लक्ष्मी का अवतार थी। पृथु का राज्याभिषेक हुआ।

वेन के पापाचरणों से पृथ्वी धन-धान्यहीन हो गई थी। प्रजा का क्लेश मिटाने के लिए पृथु धरती के पीछे पड़े तो वह कांप उठी और गौ-रूप धारण कर शरण के लिए भागी, पर कहीं भी उसे रक्षा नहीं मिली। उसने राजा से प्रार्थना की कि वह अपने उदर में पचे धन-धान्य को दूध के रूप में दे देगी, बशर्ते कि एक बछड़ा दें।

स्वायंभुव मनु को बछड़ा बनाकर पृथ्वी दुही गयी। अंत में राजा ने पृथ्वी को कन्या-रूप में ग्रहण किया। पृथु बड़े धर्मात्मा एवं भगवद्भक्त थे। इन्होंने ब्रह्मावर्त प्रदेश में पुण्यतोया सरस्वती के तट पर सौ यज्ञ किये।

सौवां यज्ञ चलते समय ईर्ष्यालु इंद्र ने इनका अश्व चुरा लिया तो ये कुपित हों गये और धनुष पर अपना बाण चढ़ा लिया। ऋषियों के मना करने पर भी वे इंद्र को होम करने लगे तो ब्रह्मा ने उन्हें रोका। इस पर धर्मात्मा पृथु ने अपना यज्ञ ही रोक लिया। पृथु ने प्रयाग को निवासभूमि बना लिया। स्वयं सनकादि इनके यहां उपस्थित हुए।

अंतिम दिनों में पृथु अर्चि सहित तपस्या के लिए वन में चले गये। वहां योग-ध्यान में शरीर-त्याग किया। पृथु तथा अर्चि के पांच पुत्र हुए थे - विजिताश्व, धूम्रकेश, हर्यक्ष, द्रविण और वृक।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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द एम्परर

द हेरोफंट

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द व्हील ऑफ फॉर्चून

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