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एट ऑफ पेंटाकल्स


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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



रोजगार, पैसा, शिक्षा, व्यापार, शिक्षुता, दोहराए जाने वाले कार्य, महारत, कौशल विकास।

यह कार्ड दर्शाता है की आपको रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।

सृष्टी के आर्किटेक्ट विश्वकर्मा के पोते और तत्वस्वर के आठवें पुत्र 'मूर्ति' का अंश आपमें हैं। जो स्वयं कुछ करना जानते हैं।

अगर आप नया बिजनस शुरू करना चाहते हो तो यह आपके लिए उत्कृष्ट समय है। नौकरी बदलना चाह्ते हो तो भी सही समय है। आपके पास पैसा आएगा। किन्तु उसका सही प्लान बनाईए। अब तक आपने पैसा बहोत कमाया और बिना वजह के खर्च भी किया। आप शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर पाओगे। अगर आप कुछ सीख रहे हैं तो उसमे भव्य यश मिलेगा। चाहे वि कम्पिटिटिव इक्झाम है, तो आप अच्छे गुणो से पास हो जाओगे। आनेवाला समय व्यापार के लिए बेहतर है। आपके लिए शिक्षुता (अपरेंटिशिप) के अवसर पैदा होंगे उसका उचीत लाभ उठाए। दोहराए जाने वाले कार्य से आपको और भी ज्यादा स्किल्स की प्राप्ति होंगी।

दोहराए जाने वाले कामों की वजह से आपको महारत हासिल होगी जिससे आपके अंदर के कौशल विकास होंगे। अन्य लोगों को आपसे हमेशा प्रेरणा ही मिलती है।

रिवर्स भविष्य कथन



शून्य, कोई महत्वाकांक्षा नहीं, नापसंदगी, आत्म-विकास, पूर्णतावाद, गलत निर्देशित गतिविधि।

अति सोच के कारण कई बार आप शून्य हो जाते हैं। आपमें कोई महत्वाकांक्षा नहीं ऐसा नहीं है। लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए सातत्य की जरूरत होती है वह सातत्य आप बीच में ही छोड देते हैं। उसपर आपक काम करना होगा। आपकी नापसंदगी किसी और के लिए 'लक' लेकर आएगी। अपने आप के आत्म-विकास पर सम्पूर्ण ध्यान केंद्रित करना जरूरी है। अति परफेक्शन पूर्णतावाद को छोड दीजिए। लोग आपके जितने परफेक्ट नहीं है। अपनी बात दूसरे के गले में उतारने ले किए कभी भी गलत निर्देशित गतिविधि की सहायता नहीं लीजिए।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



एक कारीगर लकड़ी की बेंच पर बैठकर पेंटाकल पर हथौड़े और छेनी से काम कर रहा है।एक पेंटाकल फर्श पर है, दूसरा पेंटाकल उसके हाथ में है। छह पेंटाकल लंबवत रूप से जुड़े हुए हैं। वह शहर से दूर काम कर रहा है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


पेंटाकल पर एक भारतीय कारीगर काम कर रहा है। पेंटाकल स्वर्ग से पृथ्वी पर उतर रहे हैं। एक बूढ़ा आदमी गाँव के पास घास पर बैठा है। पीछे की तरफ सूर्य की तेज रोशनी है। आकाश काले बादलों से घिरा है।

यह अगस्त का महीना है (हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण का महीना) इस विशेष मौसम में, बारिश होने के साथ ही धूप भी होती है, यह महीना आध्यात्मिक गतिविधियों से भरा होता है। कई धार्मिक लोग एक समय का उपवास भी रखते हैं।

वह विश्वकर्मा के पोते और तत्वस्वर के आठवें पुत्र 'मूर्ति' हैं।

विश्वकर्मा के पांच पुत्र थे, उन्होंने प्रत्येक पुत्र को हथौड़े और छेनी भेंट की, इसलिए उपकरण भी भगवान के अंश बन गए।

उनके पुत्रों के नाम और विशेषता इस प्रकार हैं,

1. मनु: लोहे के साथ काम करता है: लोहार,

2. माया: लकड़ी के साथ काम करता है: बढ़ई:

3. त्वष्ट: तांबे से काम करता है: बर्तन बनाता है

4. शिल्पी: पत्थर से काम: शिल्पा कला,

5. देवदन्य: सोने के साथ काम करता है: सुनार।

तो भारतीयों द्वारा पूजे जाने वाले आठ देवता हैं। स्वयं भगवान विश्वकर्मा, फिर उनके पांच पुत्र और हथौड़े और छेनी। काम करने वाले औजारों को भगवान के हिस्से के रूप में लिया जाता है।

एक भारतीय कारीगर कभी भी अपने औजारों पर पैर नहीं रखेगा। अगर उसके पैर उपकरण को छूते हैं तो वह इसके लिए सॉरी कहेगा।

(भारतीय कारीगरों का विवरण )

स्कन्दपुराण के नागर खण्ड में भगवान विश्वकर्मा के वशंजों की चर्चा की गई है। ब्रम्ह स्वरुप विराट श्री.विश्वकर्मा पंचमुख है। उनके पाँच मुख है जो पुर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऋषियों को मत्रों व्दारा उत्पन्न किये है। उनके नाम है – मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ।

ऋषि मनु विश्वकर्मा - ये "सानग गोत्र" के कहे जाते है। ये लोहे के कर्म के उध्दगाता है। इनके वशंज लोहकार के रूप मे जानें जाते है। सनातन ऋषि मय - ये सनातन गोत्र कें कहें जाते है। ये बढई के कर्म के उद्धगाता है। इनके वंशंज काष्टकार के रूप में जाने जाते है। अहभून ऋषि त्वष्ठा - इनका दूसरा नाम त्वष्ठा है जिनका गोत्र अहंभन है। इनके वंशज ताम्रक के रूप में जाने जाते है। प्रयत्न ऋषि शिल्पी - इनका दूसरा नाम शिल्पी है जिनका गोत्र प्रयत्न है। इनके वशंज शिल्पकला के अधिष्ठाता है और इनके वंशज संगतराश भी कहलाते है इन्हें मुर्तिकार भी कहते हैं। देवज्ञ ऋषि - इनका गोत्र है सुर्पण। इनके वशंज स्वर्णकार के रूप में जाने जाते हैं। ये रजत, स्वर्ण धातु के शिल्पकर्म करते है,।

लोकहित के लिये अनेकानेक पदार्थ को उत्पन्न करते वाले तथा घर, मंदिर एवं भवन, मुर्तिया आदि को बनाने वाले तथा अलंकारों की रचना करने वाले है। इनकी सारी रचनाये लोकहितकारणी हैं। इसलिए ये पाँचो एवं वन्दनीय ब्राम्हण है और यज्ञ कर्म करने वाले है। इनके बिना कोई भी यज्ञ नहीं हो सकता।

मनु ऋषि ये भगवान विश्वकर्मा के सबसे बडे पुत्र थे। इनका विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना के साथ हुआ था इन्होने मानव सृष्टि का निर्माण किया है। इनके कुल में अग्निगर्भ, सर्वतोमुख, ब्रम्ह आदि ऋषि उत्पन्न हुये है।

भगवान विश्वकर्मा के दुसरे पुत्र मय महर्षि थे। इनका विवाह परासर ऋषि की कन्या सौम्या देवी के साथ हुआ था। इन्होने इन्द्रजाल सृष्टि की रचना किया है। इनके कुल में विष्णुवर्धन, सूर्यतन्त्री, तंखपान, ओज, महोज इत्यादि महर्षि पैदा हुए है।

भगवान विश्वकर्मा के तिसरे पुत्र महर्षि त्वष्ठा थे। इनका विवाह कौषिक ऋषि की कन्या जयन्ती के साथ हुआ था। इनके कुल में लोक त्वष्ठा, तन्तु, वर्धन, हिरण्यगर्भ शुल्पी अमलायन ऋषि उत्पन्न हुये है। वे देवताओं में पूजित ऋषि थे।

भगवान विश्वकर्मा के चौथे महर्षि शिल्पी पुत्र थे। इनका विवाह भृगु ऋषि की करूणाके साथ हुआ था। इनके कुल में बृध्दि, ध्रुन, हरितावश्व, मेधवाह नल, वस्तोष्यति, शवमुन्यु आदि ऋषि हुये है। इनकी कलाओं का वर्णन मानव जाति क्या देवगण भी नहीं कर पाये है।

भगवान विश्वकर्मा के पाँचवे पुत्र महर्षि दैवज्ञ थे। इनका विवाह जैमिनी ऋषि की कन्या चन्र्दिका के साथ हुआ था। इनके कुल में सहस्त्रातु, हिरण्यम, सूर्यगोविन्द, लोकबान्धव, अर्कषली इत्यादी ऋषि हुये।

इन पाँच पुत्रो के अपनी छीनी, हथौडी और अपनी उँगलीयों से निर्मित कलाये दर्शको को चकित कर देती है। उन्होन् अपने वशंजो को कार्य सौप कर अपनी कलाओं को सारे संसार मे फैलाया और आदि युग से आजलक अपने-अपने कार्य को सभालते चले आ रहे है।

विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का वर्धकी या देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है। यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे।

विश्वकर्मा नाम के ऋषि भी हुए है। ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त दिया हुआ है और इस सूक्त में 14 ऋचायें है इस सूक्त का देवता विश्वकर्मा है और मंत्र दृष्टा ऋषि विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा सूक्त 14 उल्लेख इसी ग्रन्थ विश्वकर्मा-विजय प्रकाश में दिया है। 14 सूक्त मंत्र और अर्थ भावार्थ सब लिखे दिये है। पाठक इसी पुस्तक में देखे लेंवे। य़इमा विश्वा भुवनानि इत्यादि से सूक्त प्रारम्भ होता है यजुर्वेद 4/3/4/3 विश्वकर्मा ते ऋषि इस प्रमाण से विश्वकर्मा को होना सिद्ध है इत्यादि। पाठकगण। वेदों और पुराणों के अनेक प्रमाणों से हम विश्वकर्मा को परमात्मा परमपिता जगतपिर्त्ता, सृष्टि कर चुके तथा विश्वकर्मा के अवतारों को भी पुराणों से बता चुके है। अब भी कोई हटधमीं करें तो हमारे पास उनका इलाज करने का तरीका भी है।

रथकार शब्द प्राचीन धर्मग्रन्थों में अनेक स्थलों पर आया है और उनकें शिल्पी ब्राह्मण के स्थान में प्रयोग हुआ है। अर्थात लोककार, काष्टकार, स्वर्णकार, सिलावट और ताम्रकार सब ही काम करने वाले कुशल प्रवीण शिल्पी ब्राह्मण का बोध केवल रथकार शब्द से ही कराया गया है।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

जस्टिस

द हैंग्ड मैन

द डेथ

टेम्परंस

द डेविल

द टावर

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द मून

द सन

जजमेंट

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