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द मैजिशियन

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



रचनात्मकता, आत्मविश्वास, निपुणता, चतुराई, इच्छा-शक्ति, कौशल, अभिव्यक्ति, संसाधनशीलता, शक्ति, प्रेरित कार्रवाई

यह कार्ड एक 'यस' सकारात्मक कार्ड है। चक्रधर भगवान कृष्ण रणभूमी में अत्यंत रचनात्मक नीती से युद्ध करते थे। इस वक्त आप भी अत्यंत कल्पक और रचनात्मक है। जो अपने जीवन की समस्याओंका समाधान रचनात्मक रीती से कर रहा है|

चक्रधर जीत के प्रती आश्वस्त है और आत्मविश्वास से भरपूर है। आपकी भी जीत निश्चित है। क्योंकि आपके पास आत्मविश्वास और धैर्य है।

निपुणता, चतुराई, इच्छा-शक्ति, यह गुण आपके पास है। आप चतुराई से अपने शत्रुओंको परास्त करते हैं। आपकी इच्छा-शक्ति, प्रचंड है। जब आप किसी चीज को ठान लेते हो तो किसी माई के लाल में ताकत नहीं की आपको रोककर दिखाए।

कौशल और निडर अभिव्यक्ति यह आपकी खासियत है।

उपलब्ध संसाधनों के साथ चीजों को आप हमेशा सकारात्मक अंजाम देते हैं। आपकी शक्ति, का इस्तेमाल करने की ताकत और उसके पीछे की कार्रवाई देखकर आपको मानने वाले लोग तुरंत प्रेरित हो जाते है। जय हो।

रिवर्स भविष्य कथन



देरी, अकल्पनीय, असुरक्षा, आत्मविश्वास की कमी, हेरफेर, खराब योजना, अप्रयुक्त (छिपी हुई) प्रतिभा (टेलेंट)

चक्रधर भगवान कृष्ण हमेशा निर्णय लेने में देरी करते थे। आप में भी वही गुण है। सामने वाले के पाप का घडा भरने की आप राह देखते है। शिशुपाल के सौ पापों को क्षमा करने के बाद 101 वे पाप पर शिशुपाल का वध कर दिया था। आपके निर्णय अकल्पनीय,हो सकते है। क्योंकि आप अति सुरक्षित माहौल की अपेक्षा करते हैं। ज्यादा भाऊक होने की वजह से आपमें आत्मविश्वास की कमी होती है। पैसे के हेर फेर में आप विश्वास नहीं रखते किंतु परिस्थिती ऐसी निर्माण हो जाती है कि हेर फेर समय सूचकता हो जाती है। भले उसके लिए कोई खराब योजना और छिपी हुई प्रतिभा (टेलेंट) क्यों न हो। प्रभु कहते थे युद्ध और प्रेम में सब कुछ माफ है। जीतना जरूरी है। इसलिए आप घातक निर्णय लेते हैं। लेकिन वो प्रभु थे, हम नहीं। इसलिए मर्यादा में रहना बेहतर है।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



यूरोपीय टैरो कार्ड चित्रकार ने जादूगर के कंधों पर लाल 'कपडा ' दिखाया है, जादूगर के सिर पर एक इंफाईनाईट का ग्रीक चिन्ह है, जहां भगवान कृष्ण के सर पर एक दिव्य आभा है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


हमें पता है, भगवान कृष्ण को जादूगर का टाईटल देखकर, कई बुद्धिमान भारतीय लोगों के चेहरे पर एक दिव्य मुस्कान आ ही गई होगी। भगवान कृष्ण के दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र (ब्रह्मांड को नष्ट करने का एक बहुत ही उन्नत हथियार) है। यह छवि महाभारत के युद्धक्षेत्र की है।

फिर से, यहाँ शरीर की मुद्रा का अध्ययन करते हैं। यूरोपीय टैरो कार्ड चित्रकार ने जादूगर के कंधों पर लाल 'कपडा ' दिखाया है, जहां हजारों सालों से भगवान कृष्ण के पास लाल कपड़ा है।

(सुदर्शन चक्र की विस्तृत व्याख्या 'प्राचीन परग्रही अंतरिक्ष यात्री' दर्शन के अनुसार और महाभारत के युद्धक्षेत्र के महत्व को इस ग्रंथ के अगले भाग में विस्तार से बताया है।)

जादूगर के सिर पर एक इंफाईनाईट का ग्रीक चिन्ह है, जहां भगवान कृष्ण के सर पर एक दिव्य आभा है।

सुदर्शन चक्र अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने वाला एक चक्र, जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुँचकर वापस आ जाता है। यह चक्र भगवानविष्णु को 'हरिश्वरलिंग' (शंकर) से प्राप्त हुआ था। सुदर्शन चक्र को विष्णु ने उनके कृष्ण के अवतार में धारण किया था। श्रीकृष्ण ने इस चक्र से अनेक राक्षसों का वध किया था। सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस चक्र ने देवताओं की रक्षा तथा राक्षसों के संहार में अतुलनीय भूमिका का निर्वाह किया था।

सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था कि जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसका काम तमाम करके वापस छोड़े गए स्थान पर आ जाता था। चक्र को विष्णु की तर्जनी अंगुली में घूमते हुए बताया जाता है। सबसे पहले यह चक्र उन्हीं के पास था। सिर्फ देवताओं के पास ही चक्र होते थे। चक्र सिर्फ उस मानव को ही प्राप्त होता था जिसे देवता लोग नियुक्त करते थे। सुदर्शन चक्र की कहाँनी

प्राचीन समय में 'वीतमन्यु' नामक एक ब्राह्मण थे। वह वेदों के ज्ञाता थे। उनकी 'आत्रेयी' नाम की पत्नी थी, जो सदाचार युक्त थीं। उन्हें लोग 'धर्मशीला' के नाम से भी बुलाते थे। इस ब्राह्मण दंपति का एक पुत्र था, जिसका नाम 'उपमन्यु' था। परिवार बेहद निर्धनता में पल रहा था। गरीबी इस कदर थी कि धर्मशीला अपने पुत्र को दूध भी नहीं दे सकती थी। वह बालक दूध के स्वाद से अनभिज्ञ था।

धर्मशीला उसे चावल का धोवन ही दूध कहकर पिलाया करती थी। एक दिन ऋषि वीतमन्यु अपने पुत्र के साथ कहीं प्रीतिभोज में गये। वहाँ उपमन्यु ने दूध से बनी हुई खीर का भोजन किया, तब उसे दूध के वास्तविक स्वाद का पता लग गया। घर आकर उसने चावल के धोवन को पीने से इंकार कर दिया। दूध पाने के लिए हठ पर अड़े बालक से उसकी माँ धर्मशीला ने कहा- "पुत्र, यदि तुम दूध को क्या, उससे भी अधिक पुष्टिकारक तथा स्वादयुक्त पेय पीना चाहते हो तो विरूपाक्ष महादेव की सेवा करो। उनकी कृपा से अमृत भी प्राप्त हो सकता है।" उपमन्यु ने अपनी माँ से पूछा- "माता, आप जिन विरूपाक्ष भगवान की सेवा-पूजा करने को कह रही हैं, वे कौन हैं?"

धर्मशीला ने अपने पुत्र को बताया कि प्राचीन काल में श्रीदामा नाम से विख्यात एक महान असुर राज था। उसने सारे संसार को अपने अधीन करके लक्ष्मी को भी अपने वश में कर लिया। उसके यश और प्रताप से तीनों लोक श्रीहीन हो गये। उसका मान इतना बढ़ गया था कि वह भगवान विष्णु के श्रीवत्स को ही छीन लेने की योजना बनाने लगा। उस महाबलशाली असुर की इस दूषित मनोभावना को जानकर उसे मारने की इच्छा से भगवान विष्णु महेश्वर शिव के पास गये।

उस समय महेश्वर हिमालय की ऊंची चोटी पर योगमग्न थे। तब भगवान विष्णु जगन्नाथ के पास जाकर एक हजार वर्ष तक पैर के अंगूठे पर खड़े रह कर परब्रह्म की उपासना करते रहे। भगवान विष्णु की इस प्रकार कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें 'सुदर्शन चक्र' प्रदान किया। उन्होंने सुदर्शन चक्र को देते हुए भगवान विष्णु से कहा- "देवेश! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह अरों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश करने वाला है।

इस आयुध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत सुंदर, तीव्रगामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था।भगवान श्री कृष्ण के पास यह देवी की कृपा से आया। यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसके साथ ही इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष, जिसे द्विमुखी पैनी छुरियों मे रखा जाता था, इसका भी उपयोग किया गया था। इसके नाम से ही विपक्षी सेना में मौत का भय छा जाता था।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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