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द हाई प्रिस्टेस

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



ज्ञान, अंतर्ज्ञान, अधीरता, गुण, पवित्रता, अंतर्ज्ञान, पवित्र ज्ञान, दिव्य स्त्री, अवचेतन मन

यह कार्ड एक 'यस' सकारात्मक कार्ड है। सम्पूर्ण सृष्टी को चलाने के लिए माता सरस्वती के पास ज्ञान और अंतर्ज्ञान दोनो है। उसी प्रकार से आप के पास लोगों के बारे में ज्ञान भी है और अपनी समझ का अंतर्ज्ञान भी है।

किंतु आपके पास अधीरता का गुण थोडा ज्यादा ही है। किसी भी काम को जल्द से जल्द आप खत्म करना चाहते हैं। आपको किसी भी काम में देरी पसंद नहीं है। यह आपको अधीर बना देता है।

आप में लोगों से बढकर एक गुण है, वो है, पवित्रता! आपका चारित्र्य शुद्ध है, पवित्र है। इसलिए जब भी आप गलत चारित्र्य की व्यक्ति से मिलते हैं तो आपको क्रोध आता है। आपको अंतर्ज्ञान से किसी के भी केरेक्टर के बारे में पता चल जाता है। आप अपने ज्ञान (जानकारी) को पवित्र रखते हैं इसीलिए ललोगों से कुछ जानकारी छुपाते भी हैं। यदि आप एक पुरुष है तो आपके जीवन में एक दिव्य स्त्री है। यह स्त्री आपकी पत्नी, माँ, प्रियतमा, रिश्ते (उम्र) में बडी स्त्री या पडोसन भी हो सकती है। अगर आप खुद एक स्त्री है तो किसी के जीवन को आप दिव्यता से प्रेरित कर रही है। आप एक धार्मिक स्त्री है।

आपका अवचेतन मन हमेशा जागृत रहता है। किंतु लोग आपकी बातों का विश्वास नहीं करते। जब कुछ घटना घटीत होती है तो फिर बाद में लोगों को आपकी बात का महत्व समझ में आता है।

रिवर्स भविष्य कथन



स्वार्थ, छिछलापन, गलतफहमी, अज्ञानता, रहस्य, अंतर्ज्ञान, वापसी और मौन

आपके आजू बाजु में स्वार्थ से भरे लोग होने के कारण कई बार आप भी अपने स्वार्थ के लिए सोचना मजबूर हो जाते है। क्योंकि संसार का नियम है, जैसे करे वैसे भरे।

आप लोगों से ज्यादा फ्रेंडली होने का प्रयास करते हैं। जिससे छिछलापन प्रतित होता है। जो अक्सर गलतफहमी पैदा कर देता अहै। अगर आप किसी रिलेशनशिप में हैं तो गलतफहमी होना निश्चित है, सावधान रहना है। लोगों की अज्ञानता पर दुख जताकर रहने से जीवन का रहस्य गहरा होता जाएगा।

आपके अंतर्ज्ञान की मदद से आपकी वापसी भी होगी किंतु मौन आपका सबसे बडा हथियार है। घ्यान में रखिए।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



आधुनिक टैरो कार्ड में, कलाकार ने अंधेराऔर प्रकाश की अवधारणा को समझा। इसलिए उसने देवी के दाएं और बाएं काले और सफेद खंभे दिखाए हैं। हालाँकि, इसके महत्व को समझने में विफल रहा इसलिए वह 'B' और 'J' अक्षर खंभे पर दर्शाता है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


द हाई प्रिस्टेस रीडिंग देखें.., ज्ञान, विद्या, अंतर्ज्ञान, अधीरता, सदाचार, पवित्रता, अंतर्ज्ञान, पवित्र ज्ञान, दिव्य स्त्री, अवचेतन मन। इन गुणों को भारत में माता सरस्वती के नाम से जाना और पूजा जाता है।

उसने सफेद साड़ी पहनी है। वह एक विशाल सफेद हंस पर यात्रा करती है। उसे मोर पंख भी बहुत पसंद हैं।

वह ज्ञान और विद्या की देवी हैं। वह सबको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। संस्कृत में इसे तमसो मा ज्योतिर्गमय के नाम से जाना जाता है

माता सरस्वती के चार हाथ हैं; एक हाथ में वेद धारण किए हुए हैं। (दुनिया का परम ज्ञान)

शायद कलाकार ईसाई होने के कारण, चार हाथों को नहीं समझ पाया था, लेकिन वह हाथ में टैरो नाम की किताब जैसा कुछ रखना नहीं भूला है। यह भी ठीक है।

आधुनिक कार्ड में देवी की सीने पर एक पवित्र क्रॉस भी दिखाया है, कुर्सी पर मोर पंख की तरह कुछ डिजाइन दिखाया है।
tarot.ideazunlimited.net.The-High-Priestess वह चाँद पर नहीं बैठी है। फिर भी चाँद उसके चरणों में है। चांद को कुछ लोग बैल के सिंग समझ सकते है, जिसे प्राचीन समय में लोग सरपर पहनते थे।भारतीय कलाकरोंने सरस्वती माँ को चंद्रमा पर बैठे दिखाया। कभी सफेद हंस पर, कभी मोर पर, कभी प्रचण्ड आकार के कमल पर।

सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख वैदिक एवं पौराणिक देवियों में से हैं। सनातन धर्म शास्त्रों में दो सरस्वती का वर्णन आता है एक ब्रह्मा पत्नी सरस्वती एवं एक ब्रह्मा पुत्री तथा विष्णु पत्नी सरस्वती। ब्रह्मा पत्नी सरस्वती मूल प्रकृति से उत्पन्न सतोगुण महाशक्ति एवं प्रमुख त्रिदेवियो मे से एक है एवं विष्णु की पत्नी सरस्वती ब्रह्मा के जिव्हा से प्रकट होने के कारण ब्रह्मा की पुत्री मानी जाती है कई शास्त्रों में इन्हें मुरारी वल्लभा (विष्णु पत्नी) कहकर भी संबोधन किया गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार दोनों देवियां ही समान नाम स्वरूप , प्रकृति ,शक्ति एवं ब्रह्मज्ञान-विद्या आदि की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है इसलिए इनकी ध्यान आराधना में ज्यादा भेद नहीं बताया गया है।

ब्रह्म विद्या एवं नृत्य संगीत क्षेत्र के अधिष्ठाता के रूप में दक्षिणामूर्ति/नटराज शिव एवं सरस्वती दोनों को माना जाता है इसी कारण दुर्गा सप्तशती की मूर्ति रहस्य में दोनों को एक ही प्रकृति का कहा गया है अतः सरस्वती के १०८ नामों में इन्हें शिवानुजा(शिव की छोटी बहन) कहकर भी संबोधित किया गया है

कहीं-कहीं ब्रह्मा पुत्री सरस्वती को विष्णु पत्नी सरस्वती से संपूर्णतः अलग माना जाता है इस तरह मतान्तर मे तीन सरस्वती का भी वर्णन आता है। इसके अन्य पर्याय या नाम हैं वाणी, शारदा, वागेश्वरी , वेदमाता इत्यादि।

ये शुक्लवर्ण,शुक्लाम्बरा, वीणा-पुस्तक-धारिणी तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी(श्रीपंचमी/बसंतपंचमी) को इनकी विशेष रूप से पूजन करने की परंपरा है । देवी भागवत के अनुसार विष्णु पत्नी सरस्वती वैकुण्ठ में निवास करने वाली है एवं पितामह ब्रह्मा की जिह्वा से जन्मी हैं तथा कहीं-कहीं ऐसा भी वर्णन आता है की नित्यगोलोक निवासी श्री कृष्ण भगवान के वंशी के स्वर से प्रकट हुई है। देवी सरस्वती का वर्णन वेदों के मेधा सूक्त मे,उपनिषदों, रामायण, महाभारत के अतिरिक्त कालिका पुराण, वृहत्त नंदीकेश्वर पुराण तथा शिव महापुराण, श्रीमद् देवी भागवत पुराण इत्यादि इसके अलावा ब्रह्मवैवर्त पुराण में विष्णु पत्नी सरस्वती का विशेष उल्लेख आया है।

पौराणिक कथा अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में पितामह ब्रह्मा ने अपने संकल्प से ब्रह्मांड की तथा उनमें सभी प्रकार के जंघम-स्थावर जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी मनुष्यादि योनियो की रचना की। लेकिन अपनी सर्जन से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है।

तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने अंजली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने मूलप्रकृति आदिशक्ति माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण मूलप्रकृति आदिशक्ति वहां तुरंत ही ज्योति पुंज रूप मे प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।

ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण मूलप्रकृति आदिशक्ति के संकल्प से तथा स्वयं के अंश से श्वेतवर्णा एक प्रचंड तेज उत्पन्न किया जो एक दिव्य नारी के नारी स्वरूप बदल गया। जिनके हाथो में वीणा, वर-मुद्रा पुस्तक एवं माला एवं श्वेत कमल पर विराजित थी। मूल प्रकृति आदिशक्ति के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उस देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे समस्त राग रागिनिया संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को ब्रह्म ज्ञान विद्या वाणी संगीत कला की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा गया।

फिर आदिशक्ति मूल प्रकृति ने पितामह ब्रम्हा से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी अर्धांगिनी शक्ति अर्थात पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, शिवा शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसी उद्घोषणा कर मूलप्रकृति ज्योति स्वरूप आदिशक्ति अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए। पुराण

सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा और वीणावादिनी सहित अनेक नामों से संबोधित जाता है। ये सभी प्रकार के ब्रह्म विद्या-बुद्धि एवं वाक् प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

जस्टिस

द हैंग्ड मैन

द डेथ

टेम्परंस

द डेविल

द टावर

द स्टार

द मून

द सन

जजमेंट

द वर्ल्ड

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