tarot.ideazunlimited.net.The Wheel of Fortune

द व्हील ऑफ फॉर्चून

For English please Click here
कृपया एमेजोन से खरिदिए
कृपया फ्लिपकार्ट से खरिदिए
हमसे डायरेक्ट खरिदिए +91 9723106181


अपराईट भविष्य कथन का महत्व



अप्रत्याशित घटनाएं, उन्नति, भाग्य, प्रगति, सौभाग्य, कर्म, जीवन चक्र, भाग्य, एक महत्वपूर्ण मोड़

यह कार्ड एक 'यस' सकारात्मक कार्ड है। आपके जीवन में अप्रत्याशित घटनाएं (चौका देनेवाली घटनाएँ) हो रही है। या आनेवाले समय में घटनाएँ होगी। यह घटनाएँ आपको निराश नहीं करेंगे। आनेवाले तीन महीने में आपकी उन्नति निश्चित है। यह कार्ड दर्शाता है कि आपका भाग्य खुलने के रास्ते खुल रहे हैं। अब आपके प्रगति को आपके दुश्मन भी नहीं रोक सकते है। आपका सौभाग्य आपको आपके अब तक के अच्छे कर्म का सुंदर फल देगा। धीरज रखिए । उतावले पन से सब कुछ खत्म होगा। आपका जीवन चक्र एक महत्वपूर्ण मोड़ से गुजर रहा है। आपका भाग्य इस कदर खुलनेवाला है कि सबको चौका देगा।

रिवर्स भविष्य कथन



रुकावट, बाहरी प्रभाव, असफलता, अपशकुन,परिवर्तन का प्रतिरोध, चक्रों को तोड़ना

चक्र की तेज गती में रुकावट तब आतीं हें जब हमारा कंट्रोल चक्र पर से छुट जाता है। जैसे की ड्रायविंग वील के उपर का कंट्रोल निकल गया तो एक्सिडेंट होना स्वाभाविक है फिर किसी को दोष मत दीजिएगा। आपके प्रगती को आपके दुश्मन देख नहीं पाएंगे। वे लोग आपको रोकने के लिए बाहरी प्रभाव का प्रयोग करेंगे। जीहाँ वो कालाजादू की सहायता ले सकते हैं अ-सावधान ना रहिए। लेकिन इस काम में उन्हे असफलता मिलेगी। वे लोग अपशकुन करने की कोषिश में लगे हैं। वे आपके जीवंचक्र के परिवर्तन का प्रतिरोध साबित होने। इसलिए किसी से भी अपने मन की बात भोलेपन में आकर बताने का जो काम कर रहे हो उसे तुरंत बंद करो। नहीं तो आपके जीवन के चक्रों को तोड़ना उनके लिए आसान हो जाएगा। अगर आपने अपने भेद किसी को नही बताए तो कोई माई का लाल आपकी प्रगती को नहीं रोक सकता है। जाओ।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



'द व्हिल ओफ फॉर्च्यून' कार्ड का चक्र कुछ पवित्र प्रतीकों का मिश्रण है। इसमें मुख्य रूप से बैल, सिंह और चक्र हैं। चक्र आधुनिक बौद्ध धर्म का हिस्सा है। द व्हील ऑफ फॉर्चून का चक्र अहिंसा का प्रतीक है, जिसे जैन धर्म द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। भारतीय महाद्वीप में जैन धर्म की जड़ें बहुत गहरी हैं। जैन धर्म शाकाहारी सेवन और अहिंसा में विश्वास करता है। युरोपिय कार्ड में 'द व्हिल ओफ फॉर्च्यून' ने तीनों प्रतीकों को वैसे ही ले लिया है।

tarot.ideazunlimited.net.the bull बैल और शेर की स्थिति भी अपनी जगह पर है। केवल उन्हे पंख और किताबे एक्स्ट्रा के दिए हैं।

tarot.ideazunlimited.net.lion





tarot.ideazunlimited.net.brown Devil



युरोपिय कार्ड डिजाइनर रहस्यमय चक्र का समर्थन करते हुए भूरे रंग के शैतान को आगे जोड़ता है।
tarot.ideazunlimited.net.snake



पहिया के शीर्ष पर, एक स्फिंक्स 'ग्रीक तलवार' के साथ जिंदा सिंह की स्थिति में बैठा है।

tarot.ideazunlimited.net.skimph (भारतीय और यूनानी तलवार में बहुत अंतर होता है।)




T-A-R-O व्हील पर क्लोक वाईज अंकित है। tarot.ideazunlimited.net.T-A-R-O

पंखों वाला एक फरिश्ता (युरिएल) एक खुली किताब के साथ ऊपरी बाएँ कोने में बैठा है, लेकिन उसे नहीं पढ़ रहा है।

tarot.ideazunlimited.net.uril

एक चील (फिनिक्स) ऊपरी दाएं कोने में एक खुली हुई किताब को पकड़े हुए है

लेकिन उसे पढ़ नहीं रही है।

tarot.ideazunlimited.net.uril



प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


अब, रीडिंग देखें.. कर्म, सौभाग्य, जीवन चक्र, भाग्य, एक मोड़, अप्रत्याशित घटनाएं, उन्नति, भाग्य, भाग्य, आदि।

'कर्म' शब्द और सिद्धांत जैन धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म पर आधारित है।

(कर्म सम्बंधी अधिक विस्तृत व्याख्या)

जैन दर्शन में कर्म के मुख्य आठ भेद बताए गए है|

1) ज्ञानवरण
2) दर्शनवरण
3) वेदनी
4) मोहनीय
5) आयु
6) नाम
7) गोत्र
8) अन्तराय

दर्शन में कर्म एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त होता है। जो कुछ मनुष्य करता है उससे कोई फल उत्पन्न होता है। यह फल शुभ, अशुभ अथवा दोनों से भिन्न होता है। फल का यह रूप क्रिया के द्वारा स्थिर होता है। दान शुभ कर्म है पर हिंसा अशुभ कर्म है। यहाँ कर्म शब्द क्रिया और फल दोनों के लिए प्रयुक्त हुआ है।

यह बात इस भावना पर आधारित है कि क्रिया सर्वदा फल के साथ संलग्न होती है। क्रिया से फल अवश्य उत्पन्न होता है। यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि शरीर की स्वाभाविक क्रियाओं का इसमें समावेश नहीं है। आँख की पलकों का उठना, गिरना भी क्रिया है, परन्तु इससे फल नहीं उत्पन्न होता। दर्शन की सीमा में इस प्रकार की क्रिया का कोई महत्व इसलिए नहीं है कि वह क्रिया मन:प्रेरित नहीं होती। उ

क्त सामान्य नियम मन:प्रेरित क्रियाओं में ही लागू होता है। जान बूझकर किसी को दान देना अथवा किसी का वध करना ही सार्थक है। परन्तु अनजाने में किसी का उपकार देना अथवा किसी को हानि पहुँचाना क्या कर्म की उक्तपरिधि में नहीं आता? कानून में कहा जाता है कि नियम का अज्ञान मनुष्य को क्रिया के फल से नहीं बचा सकता। गीता भी कहती है कि कर्म के शुभ अशुभ फल को अवश्य भोगना पड़ता है, उससे छुटकारा नहीं मिलता। इस स्थिति में जाने-अनजाने में की गई क्रियाओं का शुभ-अशुभ फल होता ही है। अनजाने में की गई क्रियाओं के बारे में केवल इतना ही कहा जाता है कि अज्ञान कर्ता का दोष है और उस दोष के लिए कर्ता ही उत्तरदायी है। कर्ता को क्रिया में प्रवृत्त होने के पहले क्रिया से संबंधित सभी बातों का पता लगा लेना चाहिए।

स्वाभाविक क्रियाओं से अज्ञान में की कई क्रियाओं का भेद केवल इस बात में है कि स्वाभाविक क्रियाएँ बिना मन की सहायता के अपने आप होती हैं पर अज्ञानप्रेरित क्रियाएँ अपने आप नहीं होतीं-उनमें मन का हाथ होता है। न चाहते हुए भी आँख की पलकें गिरेंगी, पर न चाहते हुए अज्ञान में कोई क्रिया नहीं की जा सकती है। क्रिया का परिणाम क्रिया के उद्देश्य से भिन्न हो, फिर भी यह आवश्यक नहीं कि क्रिया की जाए। अत: कर्म की परिधि में वे क्रियाएँ और फल आते हैं जो स्वाभाविक क्रियाओं से भिन्न हैं।

क्रिया और फल का सम्बन्ध कार्य-कारण-भाव के अटूट नियम पर आधारित है। यदि कारण विद्यमान है तो कार्य अवश्य होगा। यह प्राकृतिक नियम आचरण के क्षेत्र में भी सत्य है। अत: कहा जाता है कि क्रिया का कर्ता फल का अवश्य भोक्ता होता है। बौद्धों ने कर्ता को क्षणिक माना है परन्तु इस नियम को चरितार्थ करने के लिए वे क्षणसंतान में एक प्रकार की एकरूपता मानते हुए कहते हैं कि एक व्यक्ति की संतान दूसरे व्यक्ति की संतान से भिन्न है। क्षणभेद होने से भी व्यक्तित्व में भेद नहीं होता; अत: व्यक्ति पूर्वनिष्पादित क्रिया का उत्तर काल में भोग करता ही है। यदी हम यह न मानें तो कहना पड़ेगा कि किसी दूसरे के द्वारा की गई क्रिया का फल का कोई दूसरा भोगता है जो तर्क विरुद्ध है।

यदि इस नियम पर पूर्ण आस्था हो तो तर्क हमें इसके एक अन्य निष्कर्ष को भी स्वीकार करने के लिए बाध्य करता है। यदि सभी क्रियाओं का फल भोगना पड़ता है तो उन क्रियाओं का क्या होगा जिनका फल भोगने के पहले ही कर्ता मर जाता है? या तो हमें कर्म के सिद्धांत को छोड़ना होगा या फिर, मानना होगा कि कर्ता नहीं मरता, वह केवल शरीर को बदल देता है। भारतीय विचारकों ने एक स्वर से दूसरा पक्ष ही स्वीकार किया है। वे कहते हैं कि मरना शरीर का स्वाभाविक कर्म है, परंतु भोग के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वही शरीर भोगे जिसने क्रिया की है। भोक्ता अलग है और वह कर्मफल का भोग करने के लिए दूसरा शरीर धारण करता है। इसी को पुनर्जन्मवाद कहते हैं। मृत्यु शरीर की आनुषंगिक स्वाभाविक क्रिया है जिसका कर्म पर कोई प्रभाव नहीं होता। अत: कर्म के सिद्धांत को पुनर्जन्म से अलग करके नहीं रखा जा सकता।

इतना ही नहीं, जब क्रिया का संबंध फलभोग के साथ माना जाता है तब यह भी मानना पड़ेगा कि भोग-जो शुभ अशुभ कर्मों के अनुसार सुखमय या दु:खमय होता है-अवश्यंभावी है। उससे बचा नहीं जा सकता, न तो उसको बदला जा सकता है। फल के क्षय का एकमात्र उपाय है उसको भोग लेना। इस जन्म में प्राणी जैसा है उसके पूर्व जन्मों की क्रियाओं का फल मात्र है। फल एक शक्ति है जो जीवन की स्थिति को नियंत्रित करती है।

इस शक्ति का पुंज भी कर्म कहा जाता है और कुछ लोग इसे भाग्य या नियति भी कहते हैं। नियतिवाद में माना गया है कि प्राणी नियति से नियंत्रित अत: परवश है। वह स्वयं कुछ नहीं करता। परन्तु पूर्वजन्मों की क्रिया का फल भोगने के अलावा वह इस जन्म में स्वतंत्र कर्ता भी है, अत: पूर्व कर्मों को भोगने के साथ ही वह भविष्य के लिए कर्म करता है। इसी में उसका स्वातंत्र्य है। आचार के लिए स्वतंत्रता परमावश्यक है और प्राय: सभी भारतीय दार्शनिक इसे मानते हैं। क्रिया, क्रियाफल तथा क्रियाफल का समूह, जिसे अदृष्ट भी कहते हैं, भारतीय दर्शन में कर्म शब्द से अभिहित होता है। पहले कहा गया है कि मनःप्रेरणा कर्म का आवश्यक उपकरण है। मनःप्रेरणा के शुभ या अशुभ होने से ही कर्म शुभ या अशुभ हाता है। डाक्टर रोगी की भलाई के लिए उसकी चीरफाड़ करता है। यदि इस चीरफाड़ से रोगी को कष्ट होता है तो डाक्टर उसका उत्तरदायी नहीं है। डाक्टर शुभ कर्म कर रहा है। अतः दुःख, जो अशुभ मनःप्ररेणा से की गई क्रिया का फल है, तभी दूर हो सकता है जब मन को अशुभ प्रभावों से बचाया जाए। सर्वदा शुभ कर्म करना सर्वदा शुभ सोचने से ही हो सकता है। कष्ट के बचने का यही एक उपाय है।

परंतु शुभ कर्म करनेवाले व्यक्ति को फलभोग के लिए जन्म लेना ही होगा, चाहे स्वर्ग में, चाहे पृथ्वी पर। जन्म लेना अपने आपमें महान्‌ कष्ट है क्योंकि जन्म का सम्बन्ध मृत्यु से है। मृत्यु का कष्ट दु:सह कष्ट माना गया है। अतः यदि इस कष्ट से भी छुटकारा पाना है तो जन्म की परम्परा को भी समाप्त करना होगा। इसके लिए शुभ कर्मों का भी परित्याग आवश्यक है क्योंकि बिना उसके जन्म से मुक्ति नहीं है। अतः शुभाशुभ परित्यागी ही वास्तविक दुःखमुक्त हो सकता है।

क्या शुभाशुभ परित्याग संभव है? शरीर रहते यह संभव नहीं मालूम होता। पर एक उपाय है। मन के शोधन से यह सिद्ध हो सकता है। यदि मन में किसी फल की आकांक्षा के बिना, पलक उठने गिरने की तरह, सारी क्रियाएँ स्वाभाविक रूप से की जाएँ तो उनसे शुभ अशुभ फल उत्पन्न नहीं होंगे और जन्म मृत्यु से भी छुटकारा मिल जाएगा। निष्काम कर्म का यही आदर्श है। इसके विपरीत सारे कर्म-जो शुभ अशुभ होते हैं-सकाम कर्म हैं और वे बंधन के कारण हैं।

कर्म के इस सिद्धांत के साथ स्वर्ग-नरक की कल्पनाएँ भी जुड़ी हैं। शुभ कर्मों के परिणामस्वरूप सकल सुखों से पूर्ण स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत नरक की प्राप्ति होती है। स्वर्ग नरक में भी शुभ अशुभ कर्म की मात्रा के अनुसार अनेक स्तर माने गए हैं, जैसे पृथ्वी पर अनेक स्तर हैं। कर्म के सिद्धांत को मानने पर स्वर्ग नरक की कल्पना को भी मानना आवश्यक हो जा जिन्हें हम शुभ कर्म कहते हैं वे पुण्य तथ अशुर्भ कर्म पाप कहलाते हैं।

पुण्य और पाप मुख्यत: क्रिया के फल का बोध कराते हैं। ये कर्म तीन प्रकार के हाते हैं। नित्यकर्म वे हैं जो न करने पर पाप उत्पन्न करते हैं, किन्तु करने पर कुछ भी नहीं उत्पन्न करते। नैमित्तिक कर्म करने से पुण्य तथा न करने से पाप होता है। काम्य कर्म कामना से किए जाते हैं अतः उनके करने से फल की सिद्धि होती है। न करने से कुछ भी नहीं होता। चूँकि तीनों कर्मों में यह उद्देश्य छिपा है कि पुण्य अर्जित किया जाए, पाप से दूर रहा जाए, अत: ये सभी कर्म मन:प्रेरित हैं। जन्म से छुटकारा पाने के लिए नित्य, नैमित्तिक और काम्य कर्मों का परित्याग अत्यंत आवश्यक माना गया है।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

जस्टिस

द हैंग्ड मैन

द डेथ

टेम्परंस

द डेविल

द टावर

द स्टार

द मून

द सन

जजमेंट

द वर्ल्ड

एस ऑफ कप्स

टू ऑफ कप्स

थ्री ऑफ कप्स

फोर ऑफ कप्स

फाइव ऑफ कप्स

सिक्स ऑफ कप्स

सेवन ऑफ कप्स

एट ऑफ कप्स

नाइन ऑफ कप्स

टेन ऑफ कप्स

पेज ऑफ कप्स

नाईट ऑफ कप्स

क्वीन ऑफ कप्स

किंग ऑफ कप्स

एस ओफ स्वोर्ड्स

टू ओफ स्वोर्ड्स

थ्री ओफ स्वोर्ड्स

फोर ओफ स्वोर्ड्स

फाईव ओफ स्वोर्ड्स

सिक्स ओफ स्वोर्ड्स

सेवन ओफ स्वोर्ड्स

एट ओफ स्वोर्ड्स

नाइन ओफ स्वोर्ड्स

टेन ओफ स्वोर्ड्स

पेज ओफ स्वोर्ड्स

नाईट ओफ स्वोर्ड्स

क्वीन ओफ स्वोर्ड्स

किंग ओफ स्वोर्ड्स

एस ओफ वांड

टू ओफ वांड

थ्री ओफ वांड

फोर ओफ वांड

फाइव ओफ वांड

सिक्स ओफ वांड

सेवन ओफ वांड

एट ओफ वांड

नाइन ओफ वांड

टेन ओफ वांड

पेज ओफ वांड

नाईट ओफ वांड

क्वीन ओफ वांड

किंग ओफ वांड

एस ऑफ पेंटाकल्स

टू ऑफ पेंटाकल्स

थ्री ऑफ पेंटाकल्स

फोर ऑफ पेंटाकल्स

फाईव ऑफ पेंटाकल्स

सिक्स ऑफ पेंटाकल्स

सेवन ऑफ पेंटाकल्स

एट ऑफ पेंटाकल्स

नाइन ऑफ पेंटाकल्स

टेन ऑफ पेंटाकल्स

पेज ऑफ पेंटाकल्स

नाईट ऑफ पेंटाकल्स

क्वीन ऑफ पेंटाकल्स

किंग ऑफ पेंटाकल्स