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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



सद्भाव, दु: ख, यात्रा, संक्रमण, परिवर्तन, पारित होने का संस्कार, सामान जारी करना।

यह कार्ड केवट की स्थिती दर्शाता है। जो प्रभू राम के कारण सद्भाव से परिपूर्ण है। प्रभु को पाने का सुख भी है किंतु प्रभु छोडकर जाएंगे उसका दु: ख भी है। जीवन रुपी यात्रा में प्रभु का साथ मिला यह अपने आप में एक संक्रमण और परिवर्तन है। इसी प्रकार की कोई न कोई यादगार घटना ही है पारित होने का संस्कार। जिसमें हम अपनी भावनाओं का सामान जारी करना, खुला करना जान चुके हैं। सामान का मतलब यहाँ हमारे मन मे बंद विचार है। उन्हें खुला करना है।

रिवर्स भविष्य कथन



बाधाएं, कठिनाइयां, हार, व्यक्तिगत संक्रमण, परिवर्तन का प्रतिरोध, अधूरा व्यवसाय

केवट हमेशा नदी में नाव चलाता था तो अनेक बाधाएं एवं कठिनाइयां उसे आती होगी ही। ठीक उसी प्रकार से आपको भी अपने जीवन में कठिनाईयाँ आ रही होगी। किन्तु हार ना मानते हुए व्यक्तिगत संक्रमण के लिए आपको तैयार रहना है। अपने भीतर के परिवर्तन का प्रतिरोध मन ही मन में होगा। कुछ भी हो जाए अपने काम को अधूरा व्यवसाय नहीं होने देना है। जो कार्य हाथ में लिया है उसे सिद्धी तक लेकर ही जाना है।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



एक आदमी एक नाव को नदी में धकेल रहा है, जहां पानी इतना गहरा नहीं है। आदमी एक गरीब महिला की मदद कर रहा है जिसके साथ एक बच्चा भी है। महिला और एक बच्चे ने खुद को कपड़े से लपेट लिया है। कार्ड रीडर की ओर किसी की नजर नहीं है। नाव के आगे छह तलवारें खड़ी हैं।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक नाविक गंगा नदी, को पार करने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास जुटा रहा है। उसने अपना आधा शरीर ढक लिया है। उसका नाम केवट है। वह भगवान राम और उनकी पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण के साथ अपनी नाव में नदी पार करने में मदद कर रहे हैं।

केवट के पास छह तलवारें हैं।

जब नाविक केवट ने भगवान श्री राम का एक पैर धोया, तो दूसरा मिट्टी में लिपट गया। इस स्थिति से केवट बहुत दुखी हो गया। नाविक के इस दु:ख को देखकर भगवान श्रीराम एक पैर पर खड़े हो जाते हैं। केवट ने पैर धोते समय उसके सिर का सहारा लेने का प्रभु को अनुरोध किया। भगवान राम ने नाविक के सिर पर हाथ रखा।

इस प्रकार केवट को आशीर्वाद मिला। तब केवट ने भगवान राम से अनुरोध किया की, प्रभु उसे जीवन के भवसागर से भी पार कर दे।

(कृपया इस ग्रंथ के दूसरे भाग में केवट और भगवान राम की अद्भुत कहानी पढ़ें।)

केवट रामायण का एक पात्र है जिसने वनगमन के समय राम, सीता और लक्ष्मण को अपनी नाव में बैठाकर गंगा पार करवाया था। इस कथा का वर्णन रामायण के अयोध्याकाण्ड में किया गया है। केवट हरीवंश कीर समाज का था। केवट श्री रामचन्द्र का अनन्य भक्त था। कहा जाता है कि सृष्टि के आरम्भ में जब सम्पूर्ण जगत जलमग्न था केवट का जन्म कछुवे की योनि में हुआ। उस योनि में भी उसका भगवान के प्रति अत्यधिक प्रेम था। अपने मोक्ष के लिये उसने शेष शैया पर शयन करते हुये भगवान विष्णु के अँगूठे का स्पर्श करने का असफल प्रयास किया था , क्योंकि उस समय वो शेष-नाग के फुंकार के कारण उनके चरण स्पर्श नहीं कर पाया था तब विष्णु भगवान ने उनको कहा था कि त्रेतायुग में उनको यह अवसर देंगे उसके बाद एक युग से भी अधिक काल तक अनेक जन्म लेकर उसने भगवान की तपस्या की और अन्त में त्रेता युग में केवट के रूप में जन्म लेकर भगवान विष्णु, जो कि राम के रूप में अवतरित हुये थे उनकी केवट ने चरण धो कर उनकी सेवा की थी।

भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ वन गमन के लिए जब प्रस्थान करते हैं तो उनकी भेंट केवट से होती है। केवट का संबंध भोईवंश से था और मल्लाह का काम किया करता था। रामायण में केवट का वर्णन प्रमुखता से किया गया है। केचव ने प्रभु श्रीराम को वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने नाव में बिठा कर गंगा पार करवाया था। रामायण के अयोध्याकाण्ड में इस प्रसंग का बहुत खूबसूरत ढंग से वर्णन किया गया है। गंगा को पार करने के लिए प्रभ श्रीराम केवट को पुकारते हुए कहते हैं कि निषाद राज तनिक नाव को किनारे लाएं, पार जाना है।

केवट ने प्रभु श्रीराम के सामने रखी शर्त ..प्रभु श्रीराम पार जाने के लिए केवट से नाव लाने के लिए कहते हैं लेकिन वह लाता नहीं और एक शर्त प्रभु राम के सामने रखते हुए कहता है कि मैंने आपका मर्म समझ लिया है। प्रभु आपके चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग आतुर रहते हैं। कहते है कि आपके पैरों की धूल किसी जड़ी बूटी से कम नहीं है। इसलिए नाव पर बैठने से पहले आपको पहले पांव धुलवाने होंगे तभी वह नाव पर चढ़ने देगा।

लक्ष्मण को क्रोध आयाभगवान राम केवट की मंशा को तुंरत समझ लेते हैं और वे तैयार हो जाते हैं उसके लिए जो केवट चाहता है। केवट के इस बर्ताव से लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वे अपना धनुष उठा लेते हैं।

केवट की बात सुन लक्ष्मण शांत हुए तब केवट कहता है कि मार दें प्रभु। इससे बड़ा सौभाग्य मेरे लिया क्या होगा सामने भगवान राम, माता सीता और गंगा का तट इससे अच्छी मृत्यु मेरे लिए हो ही नहीं सकती है। मेरा तो उद्धार हो जागा। लेकिन प्रभु आपको अंतिम क्रिया तक रहना पड़ेगा। केवट की बात को सुनकर लक्ष्मण का क्रोध शांत हो जाता है।श्रीराम को माननी पड़ी केवट की बातकेवट की इस बात को सुनकर प्रभु राम मुस्कराते हैं और कहते हैं केवट आओ मेरे पैर धोलो। इतना सुनकर केवट की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहता है और दौड़कर घर से पैर धोने के लिए कटोरा ले आता है।

एक पैर पर होना पड़ा खड़ा केवट प्रभु श्रीराम का एक पैर धोता है दूसरा मिट्टी में लिपट जाता है। इस स्थिति से केवट बहुत दुखी होता है। केवट का ये दुख देख प्रभु श्रीराम एक पैर पर खड़े हो जाते हैं। एक पैर पर खड़े होने से प्रभु राम की परेशानी देख केवट कहता है कि मेरे प्रभु आप कब तक एक पैर पर खड़े रहेगें। जब तक मैं पैर धोता हूं आप मेरे सिर का सहारा ले लें। इसके बाद प्रभु राम ने केवट के सिर पर हाथ रख दिया। इसके बाद आसमान से देवों ने पुष्प वर्षा की। चरण धोने के बाद केवट ने चरणामृत परिजनों और बन्धुजनों को पिलाया और भगवान को पार ले गया। इसक बाद बारी श्रम का मूल्य देने का समय आया इस पर केवट ने प्रभु राम से उतराई लेने से इनकार कर दिया और कहा कि प्रभु मुझे भवसागर पार करा दें।





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