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किंग ओफ वांड

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



भावुक, अच्छे नेता, कुलीन, स्वाभाविक रूप से पैदा हुए नेता, दृष्टि, उद्यमी, सम्मान

यह कार्ड लंका के राजकुमार मेघनाद के बारे में है।आप अत्यंत भावुक हैं। किंतु आप एक अच्छे नेता हैं।आपके जैसा कुलीन, स्वाभाविक रूप से पैदा हुए नेता पाकर सबको आनंद हो रहा है। आपकी दृष्टि उद्यमी लोगों को नया जीवन देनेवाली, सम्मान देनेवाली है। आप नसीब वाले हैं कि यह गुण आपके अंदर हैं।

रिवर्स भविष्य कथन



अडिग, पूर्वाग्रह, झगड़े, आवेग, जल्दबाजी, निर्दयता, उच्च अपेक्षाएं

आप अपने बात पर हमेशा अडिग रहते हैं।सभी पूर्वाग्रह पीछे रहकर झगड़े होने की सम्भावना है। भावनाओंके आवेग में जल्दबाजी नहीं करना है। आप निर्दयता से परे उच्च अपेक्षाएं रखते हुए काम कर रहे हैं। यह बहोत अच्छी खबर है।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



एक राजा किसी को देख रहा है। वह अपने दाहिने हाथ में वांड (गुढी) पकड़े हुए है। पीले-काले डिजाइन के लबादे के साथ उनके कपड़े पूरे नारंगी रंग के हैं। उनकी कुर्सी सफेद कपड़े से ढकी है।

एक पालतू गिरगिट जमीन पर है। राजा सूर्य के नीचे बैठा है। उनकी कुर्सी की पीठ पीली है और कुछ प्रतीक काले रंग में हैं

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प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


राजा सिंह की तरह दहाड़ रहा है। वह अटेकिंग मूड में है। उनके सिंहासन के पीछे सिंह की आंखें हैं।

वह अपने महल में है। वांड (गुढी) में एक रहस्यमय वायलेट आभा है।

वह लंका के राजकुमार मेघनाद हैं। उन्हें इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने भगवान इंद्र के खिलाफ लड़ाई लड़ी और युद्ध जीता।

उन्होंने अपने गुरु शुक्राचार्य से कई प्रकार के आकाशीय अस्त्र प्राप्त किए थे।

रावण कई वर्षों तक हिमालय में महादेव से प्रार्थना करने, दिव्य शक्ति प्राप्त करने के लिए गया था। रावण की अनुपस्थिति में, राजकुमार मेघनाद ही लंका का राजा था। (मेघनाद के बारे में विवरण ग्रंथ के दूसरे भाग में दिया गया है।)

मेघनाद' अथवा इन्द्रजीत रावण के पुत्र का नाम है। अपने पिता की तरह यह भी स्वर्ग विजयी था। इंद्र को परास्त करने के कारण ही ब्रह्मा जी ने इसका नाम इन्द्रजीत रखा था। इसका नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जो की ब्रह्माण्ड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पाशुपात अस्त्र के धारक कहे जाते हैं। इसने अपने गुरु शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर तथा त्रिदेवों द्वारा कई अस्त्र- शस्त्र एकत्र किए। स्वर्ग में देवताओं को हरा कर उनके अस्त्र-शस्त्र पर भी अधिकार कर लिया।

मेघनाद पितृभक्त पुत्र था। उसे यह पता चलने पर की राम स्वयं भगवान है फिर भी उसने पिता का साथ नही छोड़ा। मेघनाद की भी पितृभक्ति प्रभु राम के समान अतुलनीय है। मेघनाद रावण और मन्दोदरी का सबसे ज्येष्ठ पुत्र था। क्योंकि रावण एक बहुत बड़ा ज्योतिषी भी था जिसे एक ऐसा पुत्र चाहिए था जो कि अजर, अमर और अजेय हो, इसलिए उसने सभी ग्रहों को अपने पुत्र कि जन्म-कुण्डली के 11वें (लाभ स्थान) स्थान पर रख दिया, परन्तु रावण कि प्रवृत्ति से परिचित शनिदेव 11वें स्थान से 12वें स्थान (व्यय/हानी स्थान) पर आ गए जिससे रावण को मनवांछित पुत्र प्राप्त नहीं हो सका। इस बात से क्रोधित रावण ने शनिदेव पर पैर से प्रहार किया था ।

मेघनाद के गुरु असुर-गुरु शुक्राचार्य थे। किशोरावस्था (12 वर्ष) कि आयु होते-होते इसने अपनी कुलदेवी निकुम्भला के मन्दिर में अपने गुरु से दीक्षा लेकर कई सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं । एक दिन जब रावण को इस बात का पता चला तब वह असुर-गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में पहुँचा। उसने देखा कि असुर-गुरु शुक्राचार्य मेघनाद से एक अनुष्ठान करवा रहे हैं। जब रावण ने पूछा कि यह क्या अनुष्ठान हो रहा है, तब आचार्य शुक्र ने बताया कि मेघनाद ने मौन व्रत लिया है। जब तक वह सिद्धियों को अर्जित नहीं कर लेगा, मौन धारण किए रहेगा। अन्ततः मेघनाद अपनी कठोर तपस्या में सफल हुआ और भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए। भगवान शिव ने उसे कई सारे अस्त्र-शस्त्र, शक्तियाँ और सिद्धियाँ प्रदान की। परन्तु उन्होंने मेघनाद को सावधान भी कर दिया कि कभी भूल कर भी किसी ऐसे ब्रह्मचारी का दर्शन ना करे जो 12 वर्षों से कठोर ब्रह्मचर्य और तपश्चार्य का पालन कर रहा हो । इसीलिए भगवान श्रीराम जी ने लक्ष्मण जी से 12 वर्ष तक कठोर तपस्या करवाई थी ।

वरदान पाने के बाद मेघनाद एक बार फिर से असुर गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया और उनसे पूछा उसे आगे क्या करना चाहिए । तब असुर-गुरु शुक्राचार्य ने उसे सात महायज्ञों की दीक्षा दी जिनमें से एक महायज्ञ भी करना बहुत कठिन है। यह भी कहा जाता है कि मेघनाद का नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जोकि आदिकाल से इन महायज्ञ को करने में सफल हो पाए हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान श्रीविष्णु जी, रावण पुत्र मेघनाद और सूर्यपुत्र कर्ण के अतिरिक्त आदिकाल से ऐसा कोई नहीं है जो वैष्णव यज्ञ कर पाया हो ।

देवासुर संग्राम के समय जब रावण ने सभी देवताओं को इन्द्र समेत बन्दी बना लिया था और कारागार में डाल दिया था, उसके कुछ समय बाद एक समय सभी देवताओं ने मिलकर कारागार से भागने का निश्चय किया और साथ ही साथ रावण को भी सुप्त अवस्था में अपने साथ बन्दी बनाकर ले गए। परन्तु मेघनाद ने पीछे से अदृश्य रूप में अपने दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर देवताओं पर आक्रमण किया ।

देव सेनापति भगवान कार्तिकेय ठीक उसी समय देवताओं की रक्षा के लिए आ गए परन्तु मेघनाद को नहीं रोक पाए। मेघनाद ने न केवल देवताओं को पराजित किया अपितु अपने पिता के बन्धन खोलकर और इन्द्र को अपना बन्दी बनाकर वापस लंका ले आया। जब रावण जागा और उसे सारी कथा का ज्ञान हुआ तब रावण और मेघनाद ने यह निश्चय किया इन्द्र का अन्त कर दिया जाये, परन्तु ठीक उसी समय भगवान ब्रह्मा जी लंका में प्रकट हुए और उन्होंने मेघनाद को आदेश दिया कि वह इन्द्र को मुक्त कर दे।

मेघनाद ने यह कहा कि वह कार्य केवल तभी करेगा जब ब्रह्मदेव उसे अमरत्व का वरदान दे, परन्तु ब्रह्मदेव ने यह कहा यह वरदान प्रकृति के नियम के विरुद्ध है परन्तु वह उसे यह वरदान दिया कि जब आपातकाल में कुलदेवी निकुम्भला का तान्त्रिक यज्ञ करेगा तो उस एक दिव्य रथ प्राप्त होगा और जब तक वह उस रथ पर रहेगा तब तक कोई भी ना से परास्त कर पाएगा और ना ही उसका वध कर पाएगा। परन्तु उसे एक बात का ध्यान रखना होगा कि जो उस यज्ञ का बीच में ही विध्वंस कर देगा वही उसकी मृत्यु का कारण भी होगा। और साथ ही साथ ब्रह्मदेव ने यह वरदान भी दिया कि आज से मेघनाद को इन्द्रजीत कहा जाएगा जिससे इन्द्र की ख्याति सदा सदा के लिए कलंकित हो जाएगी ।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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द एम्प्रेस

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